BE PROUD TO BE AN INDIAN

मंगलवार, जनवरी 25, 2011

62 वाँ गणतन्त्र दिवस

देशवासियों को 62 वें गणतन्त्र की हार्दिक बधाई | 61 गणतन्त्र मनाए जा चुके हैं | 62 वाँ मनाए जाने की तैयारी है और कुछ समय बाद यह मनाया जा चुका होगा, लेकिन विचारणीय विषय यही है कि क्या इतना काफी है ? क्या गणतन्त्र से अभिप्राय दिल्ली में परेड मात्र है ? हर कोई इसका जवाब नहीं देगा, लेकिन हालात कुछ और बयाँ करते हैं | सरकारों पर सरकारें बदलती हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात | विपक्ष में आते ही सबको बुराइयाँ नजर आती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद सब बुराइयाँ दिखनी बंद हो जाती हैं | इस बार कुछ परिवर्तन होगा, ऐसा नहीं है, परन्तु उम्मीद पर दुनिया कायम है | काश ! अच्छा हो - ये सभी सोच रहे हैं | देशवासी देश के कर्णधारों की तरफ बड़ी उम्मीद से ताक रहे हैं | वे कब उम्मीदों पर खरे उतरेंगे यह भविष्य के गर्भ में है |
       आम आदमी को जीने के अधिकार मिलें, उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा हो, सुरक्षा और सुविधाएँ समान स्तर पर मिलें, नौकरी में अवसर की समानता प्रदान की जाए, सबको आगे बढने का मौका मिले, ये कुछ ऐसी मांगें हैं जो हर कोई मांग रहा है और ये कोई खैरात भी नहीं है अपितु देश के नागरिक होने के नाते हमारा हक भी है | हमारे पूर्वजों ने इन्हीं हकों को पाने के लिए बलिदान दिए थे | देश के कर्णधारों को ये हक देशवासियों को मुहैया करवाने ही चाहिए |
            ये तो रही सरकार की जिम्मेदारी | आम जनता की भी कुछ जिम्मेदारियां हैं | उन्हें भी अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए | अकेले हक मांगने से देश नहीं चलता | कर्त्तव्य भी जरूरी हैं | छोटी-सी बात होते ही जब हम देश की सम्पत्ति को नष्ट करने पर उतारू हो जाते है, तब देश कैसे बचेगा | देश हमारा घर है ये बात समझनी होगी |
         आओ इस 62 वें गणतन्त्र पर हम सब देश हित का प्रण लें | देशवासी देश के बारे में सोचें और देश के कर्णधार देशवासियों के बारे में | देश हमसे है और हम देश से हैं - यही सोचकर जब हम फैसले लेंगे तो निस्संदेह देश का भला होगा |
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मंगलवार, जनवरी 18, 2011

आओ प्रयास करें

मुझे गर्व है इस बात के लिए कि मैं भारतीय हूँ मुझे यह भी स्वीकार करते हुए शर्म नहीं आती कि भारत , जो प्राचीन काल में समृद्ध संस्कृति का स्वामी था , वर्तमान में अनेक बुराइयों से ग्रस्त हो चुका है . ये बुराइयाँ सामाजिक , राजनैतिक और धार्मिक सभी स्तरों पर हैं . एक सच्चा नागरिक होने के नाते बुराइयों का वर्णन करना , इनके निराकरण के बारे में सोचना और इन्हें दूर करने का प्रयास करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ क्योंकि सुंदर और समृद्ध भारत को देखना हर भारतीय की तरह मेरा भी सपना है . यूं तो कहा जाता है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता , लेकिन ये भी सच है कि एक-एक से काफिला बनता है. इसी दृष्टिकोण से मैं प्रयासरत हूँ . निश्चित रूप से आप भी होंगे . आओ मिलकर प्रयास करें . सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना न करके सुधार के लिए आलोचना करें . विरोध योग्य हर बात का विरोध करें .शोषितों , दीन-दुखियों के लिए आवाज़ बुलंद करें और सुंदर-समृद्ध भारत की नींव रखें .

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मंगलवार, जनवरी 11, 2011

गठन नए राज्यों का

कहने को हम भारतीय हैं, लेकिन वास्तव में भारतीय होने की अपेक्षा हम हरियाणवी, पंजाबी, गुजराती, मराठी ज्यादा हैं | क्षेत्रवाद से हमारा प्रेम इतना ज्यादा है कि देश पीछे छूट जाता है | महाराष्ट्र का मराठावाद सर्वविदित ही है | नए-नए राज्यों का गठन और इनके क्षेत्र को लेकर विवाद इसी का प्रतीक है | अक्सर राजनेताओं पर आरोप लगाया जाता है कि वे वोट बैंक के लिए ऐसे मुद्दे उठाते हैं, लेकिन असली दोषी जनता है जो इन मुद्दों को उठने का मौका देती है |
                 यहाँ तक नए राज्यों के गठन की बात है, देश में तेलंगाना, विदर्भ, हरित प्रदेश, बुन्देलखण्ड, गोंडवाना, मिथिलांचल, गोरखालैंड जैसे राज्यों की मांग समय-समय पर उठती रही है | छोटे राज्य लाभदायक हैं ऐसा तर्क दिया जाता है | हरियाणा , हिमाचल ,उतरांचल का उदाहरण भी दिया जाता है, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाता क्योंकि प्रत्येक पार्टी के अपने हित हैं | गठित किये गए आयोग भी कमोबेश सत्तारूढ़ दल की उम्मीदों का ध्यान रखतें हैं | परिणामस्वरूप एक तरफ आन्दोलन होते रहते हैं, दूसरी तरफ टरकाउ नीति जारी रहती है |
           नए राज्यों का गठन कुछ हद तक जायज है, लेकिन इसकी देखा-देखी जब देश के हर कोने से नए राज्य की मांग उठने लगती है, तब यह अनुचित हो जाता है | देशवासियों को सोचना चाहिए कि नए राज्यों का गठन एक खर्चीला काम है | जब हम घरेलू स्तर पर फालतू खर्च स्वीकार नहीं करते तब देश के स्तर पर इसे जायज कैसे माना जा सकता है ? अत: जब जरूरी हो तभी नए राज्यों का गठन होना चाहिए |
              नए राज्यों के गठन में क्षेत्र का निर्धारण सबसे बड़ी समस्या है | तेलंगाना-आंध्रप्रदेश में हैदराबाद किस तरफ हो यह प्रमुख मुद्दा है | कुछ ऐसी ही समस्या हरियाणा बनने के 44 वर्ष बाद भी कायम है | ' चंडीगढ़ हमारा है ' - ये रट दोनों राज्य लगाए हुए हैं | हैदराबाद हमारा है - ऐसी ही रट कल को तेलंगाना और आंध्रप्रदेश लगाएंगे | इसका एकमात्र समाधान ऐसे क्षेत्रों को केन्द्रशासित प्रदेश बनाना ही है, लेकिन केन्द्रशासित बनाते ही इसे दोनों राज्यों से छीनना जरूरी है | चंडीगढ़ के मामले में ऐसा नहीं हुआ | यह हरियाणा और पंजाब दोनों की राजधानी है और अब कोई भी इसे छोड़ने को तैयार नहीं है | चंडीगढ़ किसे मिले यह विवाद का विषय  है और इसका समाधान यही है कि चंडीगढ़ दोनों से छीन लिया जाए, यही तरीका हैदराबाद के बारे में अपनाया जाना चाहिए | ऐसा करने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए क्योंकि ये दोनों खूबसूरत शहर रहेंगे तो भारत का हिस्सा ही |  


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